Thursday, July 7, 2011

गजल

बश्र जो सरफिरा नहीं होता
दर्द उसको पता नहीं होता

अब तू तन्हाइयों की आदत रख
हर जगह आइना नहीं होता

ग़र खुदा है तो है जमीं पर ही
आसमां में खुदा नहीं होता

जूस्तजूँ जिसकी है नहीं मिलता
और कुछ ढूँढना नहीं होता ।

1 comment:

Krishna Singh Pela said...

सोचा था उद्धृत किया है , पता न था अपना ही सृजन है , फारसी कस्तूरी क्या चीज है , यहाँ इतनी सुगन्ध है , अनुपम ! अनुपम ! मेरे पास शब्द हैँ कम , धन्य हो तुम , श्रेष्ठ हो तुम , हे गजलकार तुम्हेँ मेरा सलाम !