दौड़ में जीतेंगे लंगड़े घुड़सवारों से
तब सुलह होगी हमारी इन बहारों से
ये दीया बुझ भी गया तो मैं न हारूंगा
रोशनी लेता रहा हूँ मैं सितारों से
वो भला क्या इस लहर का समझे व्याकरण
जो हमेशा से है चिपका बस किनारों से
कौन सुनता कुछ कहा था बेजुबानों ने
सत्य ले आकर जब यूँ शोर-नारों से
बस हमीं सुनते रहे है किन किताबों में
कुछ गिले हम भी करेंगे आज यारों से
किस तरह 'निस्तेज' हूँ क्या पूछिए जनाब
सर पटकते थक गया हूँ मैं दीवारों से
१२ जनवरी २००९
5 comments:
ब्लोग जगत मे आपके इस नये चिट्ठे का स्वागत है दोस्त.
वो भला क्या इस लहर का समझे व्याकरण
जो हमेशा से है चिपका बस किनारों से
सह्वी बात है भाई किनारो पे तैरने मे सलामती है पर आनन्द नही है
बेहतरीन गज़ल .... स्वागत है ....
नाहक ही ब्लॉग का नाम निस्तेज रख दिया ... काफी ओज और तेज है आपकी ग़ज़लों में ....
वो भला क्या इस लहर का समझे व्याकरण
जो हमेशा से है चिपका बस किनारों से
Har sher badhiya hai..tejomay hai!
हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
Dear Blog users
I am really thankful to you that you have posted your valuable comments on it.
I hope these will carve my writing in a charimatic way.
Thanks
Bhuwan Nistej
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